औंछी राजनीति

 हमारे खान-पान की परंपरा है कि चाय-पकौड़े के बाद पान पेश किया जाता है। लेकिन भाजपा के राज में यह शायद रोजगार की परंपरा बन चुकी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, तीन बार मुख्यमंत्री बनने के बावजूद खुद का प्रचार चायवाला के तौर पर करवाना पसंद करते हैं और मीडिया इसमें उनका भरपूर साथ देता है।चायवाला वाला जुमला इतना प्रचारित कर दिया गया है, मानो चाय का ठेला लगाने वाले किसी व्यक्ति को ही सीधे चुनाव जीतकर देश संभालने दे दिया गया हो। चाय से बात आगे बढ़ी तो पकौड़ों पर जाकर अटक गई। एक टीवी चैनल को दिए साक्षात्कार में बेरोजगारी पर मोदीजी ने कहा कि अगर आपके दफ्तर के बाहर कोई पकौड़ा बेचता है, तो वह रोजगार नहीं है क्या?इस तरह देश में पकौड़ा रोजगार पर चर्चा शुरू हो गई।विपक्षियों ने पकौड़ों का खोमचा लगाकर भाजपा सरकार का सांकेतिक विरोध किया। यह प्रहसन चल रहा था कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने राज्यसभा में पकौड़ा राजनीति पर अपने विचार प्रकट किए। अब यह बात भी आई गई हो गई। चाय-पकौड़े के बाद अब पान की दुकान लगाकर रोजगार हासिल करने का मंत्र त्रिपुरा की भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री बिप्लव देब ने दिए हैं। उन्होंने नसीहत दी है कि राज्य के युवा सरकारी नौकरियों के लिए नेताओं के पीछे भागने की बजाय पान की दुकान खोल लेते, तो उनका बैंक बैलेंस लाखों में होता। एक सेमिनार में त्रिपुरा के मुख्यमंत्री ने कहा कि युवा सरकारी नौकरी के लिए कई वर्षों तक राजनीतिक दलों के पीछे भागते हैं और अपने जीवन के कई अनमोल वर्ष बरबाद कर देते हैं। अगर यही युवा राजनीतिक दलों के पीछे भागने की बजाय पान की दुकान खोल लेते तो अब तक उनके बैंक में 5 लाख रुपये होते। उन्होंने यह समझाइश भी दी कि यह संकीर्ण सोच है कि ग्रेजुएट खेती या पशुपालन नहीं कर सकते हैं, क्योंकि ऐसा करने पर उनका स्तर गिर जाएगा। बात तो सही है, काम तो कोई भी छोटा या बड़ा नहीं होता। लेकिन यहां मुद्दा यह नहीं है कि हम किस काम को छोटा या बड़ा मानते हैं, मुद्दा तो यह है कि सरकार रोजगार देने के अपने वादे को पूरा क्यों नहीं करती है? और किसानों या पशुपालकों की दुर्दशा भी किससे छिपी है। भाजपा सरकार में किसान देश भर में कहीं रैलियां निकाल रहे हैं, कहीं भूख हड़ताल कर रहे हैं, और फिर भी उनकी समस्याओं का हल नहीं मिल रहा तो आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहे हैं। बीते दिनों महाराष्ट्र में एक किसान ने अपने आत्महत्या के पत्र में बाकायदा प्रधानमंत्री को जिम्मेदार ठहराया है। मवेशियों को पालने वाले भी धर्म के स्वयंभू रक्षकों के आतंक से ग्रसित हैं। मवेशियों को चराने के लिए ले जाना या बेचने के लिए ले जाना उनके लिए जानलेवा बनता जा रहा है। इसके बाद भाजपा किस मुंह से नौजवानों को खेती करने या पशुपालक बनने की सलाह देती है। और अगर यही करना है तो फिर पूरे देश में कृषि और पशुपालन की पढ़ाई के संस्थान ही खोलने चाहिए।इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट या अन्य तमाम कोर्स बंद ही कर देना चाहिए।इंजीनियर बनने वाला नौजवान तो अपनी योग्यता के अनुरूप ही नौकरी चाहेगा। पांच-सात साल जी-तोड़ मेहनत, खचीर्ती पढ़ाई कोई इसलिए तो नहीं करता कि उसे पकौड़ा बेचने या पान बेचने की नसीहत मिले। एनसीआरबी के आंकड़े हैं कि हर दिन 26 युवा बेरोजगारी की हताशा के कारण आत्महत्या कर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने भी भारत में बेरोजगारी की स्थिति पर चिंता जतलाई है। आईएलओ के मुताबिक वर्ष 2018 में भारत में बेरोजगारों की संख्या 1.86 करोड़ रहने का अनुमान है। जबकि 2019 में यह संख्या 1.89 करोड़ तक बढ़ सकती है। कहां तो भाजपा ने 2014 की चुनावी घोषणा में हर साल 2 करोड़ लोगों को रोजगार का वादा किया था, और कहां उसके शासन में बेरोजगारी डराने वाली स्थिति पर पहुंच चुकी है। त्रिपुरा की ही बात करें, जहां हाल ही में भाजपा ने वाममोर्चे को परास्त करने का इतिहास रचा और बूढ़े मानिक दा की जगह युवा बिप्लव देब को सत्ता की कमान मिली, वहां भाजपा के चुनावी घोषणापत्र में एसईजेड बनाने की घोषणा है, जिसके कारण हर घर में एक रोजगार का वादा है। भाजपा ने युवाओं को स्मार्टफोन देने की घोषणा भी वहां की थी। तो क्या इस स्मार्टफोन पर कितने पान, कहां पहुंचाने हैं और किसे किस तरह का पान पसंद है, यह सब फीड किया जाएगा। युवा पान लगाने की कला में अपना स्किल डेवलेपमेंट दिखाएंगे? पान के साथ पीक का तो रिश्ता अटूट है, फिर इस पीक से मोदीजी के स्वच्छ भारत अभियान का क्या होगा?