मजदूर एक बार फिर बेरोजगारी की दहलीज पर ?

 लॉकडाउन में बेपटरी होता बाजार।


मजदूर एक बार फिर बेरोजगारी की दहलीज पर ?


लगभग 20 दिन के लॉकडाउन में साप्ताहिक ठेली-पटरी (पैठ बाजार)वालों को पुलसिया डण्डे से खदेड़ दिया गया है। फलस्वरूप सब्जी,कपड़ा,मिर्च मसाला,फल,चूड़ी कंगन,जूती चप्पल के साथ चाट पकोड़े वाले समेत अनेकों कामगार बेरोजगार होकर भुखमरी की ओर अग्रसर है। साथ ही सड़क पर ठेली लगा कर लोगों को भोजन उपलब्ध कराने वाले भी घर बैठने के लिए विवश हैं। राजमिस्त्री, बढ़ई, नाई, टैम्पो, रिक्शा व रोजमर्रा की मजदूरी करने वालों का चूल्हा भी जलना मुश्किल हो रहा है।जब देश में एक मई को लोग मजदूर दिवस मनाने में मग्न थे। वहीं नासरपुर चौक व चौपला मन्दिर पर सैकड़ों मजदूर पेट की आग बुझाने की खातिर रोटी की जुगाड़ में काम पाने के लिए इधर उधर भटकते नजर आए। राजनेता अधिकारी पदाधिकारी जहां मजदूर दिवस मनाने में मग्न थे। वहीं मजदूर मजदूरी पाने के लिए लालायित दिखे। लॉकडाउन में मजदूर काम पाने के लिए बेचैन रहते हैं। मजदूरों ने व्यवस्था को कोसते हुए कहा कि पेट की आग को मिटाने के लिए काम की तलाश में निकले हैं। मजदूर दिवस हो या कोई अन्य त्यौहार हम सब रोज कमाते हैं तो रोटी मिलती है। काम करने पर ही परिजनों का भरण पोषण होता है। चौक में इधर उधर भटकने वाले मजदूरों ने कहा कि सरकार खाली जगहों पर बेरोजगार युवकों को रोजगार देने का काम करे। घर के युवा को रोजगार मिलेगा तो रोटी के लिए लालायित होना नहीं पड़ेगा। घर में अन्न रहेगा तो बच्चे भूखे नहीं तड़पेंगे,लॉकडाउन से घबराए प्रवासी मजदूरों की जितनी बड़ी भीड़ शहरों से अपने घर-गांवो की तरफ भागती दिख रही है। उससे बेरोजगारी की भयावहता का अंदाजा मुश्किल नहीं है। यह प्रवासी मजदूर अपने गांवों में बेरोजगारी के पुराने हालात पर क्या असर डालेंगे इसका अनुमान भी कठिन नहीं है। मोटा अंदाजा लगाया जा सकता है कि पहले से बेरोजगारी से पीड़ित गांवों में बेरोजगारी की दर अब दोगुनी-तिगुनी बढ़ने का अंदेशा सर पर आ खड़ा हुआ है। भले ही कितना भी लॉकडाउन हो लेकिन सभी उद्योगों को चलाने के स्पष्ट आदेश जारी किए गए हैं। और कितना भी लॉकडाउन रहे,उधोगपतियों के सामने रोजी रोटी का कोई संकट नहीं...! लॉकडाउन निर्धनों,समाज में गरीबी रेखा से जीने वालों के लिए ही कहर बनकर क्यों आता हैं? अब बात मध्यम वर्गीय समाज की सीज़नल कार्य करने वाले कूलर निर्माता, विक्रताओं को पिछले गर्मियों में लॉकडाउन के चलते भारी नुकसान झेलना पड़ा था,इस बर्ष एक बार फिर मार्केट से पैसा उठा कर खड़े होने का प्रयास कर रहें थे।


लेकिन बेरहम लॉकडाउन ने एक बार फिर बेरोजगारी की दहलीज पर खड़ा कर दिया। इसी प्रकार इलेक्ट्रिक,इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के डीलर्स भी बेपटरी होते रोजगार से आहत हैं।

कोविड-19 का चढ़ता हुआ ग्राफ किस ऊंचाई पर पहुंचकर दम तोड़ेगा, यह साफ होने में तो अभी थोड़ा वक्त लगेगा। उल्टा वैज्ञानिकों ने नवम्बर में तीसरी लहर की चेतावनी जारी कर दी है, चिकित्सा वैज्ञान के अनुसार तीसरी कोविड लहर बच्चों के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। लेकिन राष्ट्रव्यापी तालाबंदी ने नौकरियों का कितना नुकसान किया है इसे लेकर पहला आकलन आने के साथ तस्वीर बहुत कुछ साफ हो चली है,नौकरियों के नुकसान के आंकड़े बड़े भयावह हैं। शायद, दुनिया में ऐसा नुकसान पहली बार देखने को मिल रहा है, पिछले दो हफ्तों में देश में जितने लोगों ने रोजगार गंवाये हैं, वैसा देश के आर्थिक इतिहास में कम देखने में आता है। रोजगार के मोर्चे पर अनिश्चितता झेल रहे लोगों की तादाद आज भारत में रुस की आबादी जितनी हो सकती है। बेरोजगार व्यक्ति निराशा, चिंता, तनाव जैसी समस्याओं को जन्म देता है। रोजगार पाने के लिए बेरोजगार इंसान मज़बूरी में गलत रास्ता अपना लेता है जैसे चोरी, डकैती, अपहरण, नशीले पदार्थों की तस्करी आदि जैसे अपराधों में घिर जाता है। एक अध्धयन के अनुसार शिक्षित रोजगार की वृद्धि के कारण अपराध दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है।

अर्थव्यवस्था और रोजगार दोनों किसी भी देश की रीढ़ हड्डी के सामान है। यानी देश की प्रगति इन दोनों पर निर्भर करती है। अमरीका जैसे विकसित देशों में बेरोजगारी का दर बढ़ने के साथ गरीबी बढ़ रही है। जब 2008 में अमरीका में मंदी आयी तो वहां की गरीबी का स्तर आश्चर्य रूप से बढ़कर 16 प्रतिशत के करीब चला गया। विकसित देशो की अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी गरीबी का प्रमुख कारण है। दूसरी ओर भारत जैसे विकासशील देश में उच्च बेरोजगारी दर और अकुशल कार्यबल के कारण शिक्षित युवा अकुशल श्रमिक वर्ग की नौकरी पाने हेतु संघर्ष कर रहे है। शिक्षित बेरोजगारी गरीबी की तुलना में सबसे बड़ा अभिशाप है। देश के विकास के लिए बेरोजगारी एक प्रमुख बाधा बन कर खड़ी है। भारत में आकड़ो के तहत बेरोजगारी की संख्या 10 करोड़ पार कर गयी है। बढ़ती बेरोजगारी देश के लिए अच्छे संकेत नहीं है, यदि सरकार नहीं चेती तो बेरोजगार युवाओं की बढ़ती फ़ौज चिंताजनक हालात पैदा कर सकती हैं।