देश में मौत का तांडव,सौदागरों की लूट।

 देश में मौत का तांडव,सौदागरों की लूट।


अपनों को मरता देखने के लिए विवश परिजन ?


शमशान घाटों पर जगह खाली नहीं के लगें साइन बोर्ड, कब्रों से भरे कब्रिस्तान,लाइन में अपनी बारी का इंतजार करते शव कोरोना की भयावहता को दर्शाने के लिए पर्याप्त हैं। परिजन अपने प्रिर्य को तड़पते हुए/मरते हुए देखने के लिये विवश हैं। सोशल मीडिया/समाचार पत्र न्यूज चैनलों पर मौत का तांडव देखा जा सकता हैं। आ रहीं तसवीरें कलेजा हिला कर रख रहीं है,

देश भर के अस्पताल ऑक्सीजन और बेड की कमी के कारण मरीज़ों को लौटा रहे हैं।

राज्यों में हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर ठप हो चुका है।वास्तव में कई राज्यों ने कोरोनावायरस के सेकंड वेव से निबटने के लिए तैयारी नहीं की थी, और इस वजह से अब वहां लोग बेहाल हैं।

कोरोनावायरस के दूसरे चरण की भयावहता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि लोग एक हॉस्पिटल से दूसरे हॉस्पिटल तक दौड़ रहे हैं. उन्हें हॉस्पिटल में बेड, ऑक्सीजन, दवा, एंबुलेंस आदि कुछ भी नहीं मिल पा रहा है।हेल्पलाइन पर आने वाले फोन की बाढ़ आ चुकी है और नोडल ऑफिसर अनरीचेबल हो चुके हैं।

ऑक्सीजन की सुविधा से लैस एंबुलेंस सर्विस मुहैया कराने में भी दिक्कत पेश आने लगी,और अगर किसी परिवार को अपने मरीज के लिए अस्पताल में बेड मिल भी जाए तो उसे हॉस्पिटल लेकर जाना अलग चुनौती है। हालात नाजुक मोड़ पर आ गए, जहां अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी के कारण लोगों की जानें जाने लगीं है।

आरटी-पीसीआर टेस्ट के लिए सरकार की ओर से निर्धारित राशि से ज्यादा वसूली करने की शिकायतें भी सामने आ रही हैं, जबकि यह टेस्ट निशुल्क होने चाहिए। कोरोना जांच के लिए जगह-जगह लगाए गए सेंटरों में निशुल्क रैपिड एंटीजन टेस्ट करने की किट भी खत्म होने की भी शिकायतें मिल रही हैं।

ऐसे संकटकालीन दौर में देश के सौदागरों ने आपदा को अवसर में बदलने में कोई कसर नहीं छोड़ी,मेरे एक परिचित रमेश कुमार ने ऑक्सीजन सिलेंडर 3000 में रिफिल कराया,जबकि खाली सिलेंडर एक परिचित ने उपलब्ध करा दिया था,पसौन्डा निवासी हाजी वारीस ने सिलेंडर के ऊपर लगने वाले मीटर को 5000 में खरीदा,एक नामचीन पत्रकार मित्र की बहन की डेथ होने पर उन्हें कविनगर सर्वोदय अस्पताल से हिंडन मोक्ष स्थली तक का 10 किमी के सफर के लिए एम्बुलेंस को मुँह मांगी कीमत 16 हजार देनी पड़ी। 35-40 हजार में मिलने वाले ऑक्सीजन कंस्ट्रेटर डेढ़ लाख रुपये तक बेचा जा रहा है, एम्स के एक नामचीन डॉक्टर अल्तमश को रेमडेसिवीर इंजेक्शन की कालाबाजारी करते हुए गाज़ियाबाद पुलिस ने गिरफ्तार किया, यह डॉक्टर रूपी मौत के सौदागर 4000 वाले रेमडेसिवीर इंजेक्शन को 40000 हजार तक बेच रहें थे। इसके साथ ही आम बुखार में काम आने वाली पेरासिटामोल, विटामिन सी जैसी दवाओं का भी कृतिम अभाव बना कर मनमर्जी रेट बसूल किये जा रहें है। मार्किट में विटामिन सी पाए जाने वाले फलों पर भी महंगाई का असर देखने को मिल रहा है,60 रुपये किलो बिकने वाला नीबू 200 रुपये के भाव है, सन्तरा और मौसमी के भावों में 100 रुपये किलो की तेजी है। नारियल पानी मार्केट में दुगने दाम पर मिल रहा है। यह तो थे छोटे मोटे मौत के व्यापारी, अब बात बड़े व्यापारियों की देश की अधिकतर चिकित्सा व्यवस्था प्राइवेट अस्पतालों के हाथों में है। इन प्राइवेट हाथों ने सही मायनों में आपदा को अवसर में बदला है। आक्सीजन युक्त बेड तीस हजार से लेकर एक लाख तक, व वेंटिलेटर की सुविधा वाले बेड इच्छा और परिस्थितियों के अनुसार बेचे जा रहें हैं। जैसा मरीज वैसा चार्ज....सरकारी दावे मात्र बयानबाज़ी साबित हो रहे हैं। 

एक ओर दुनिया के अधिकतर देशों ने कोरोना के विरुद्ध जंग में अपने संशाधन बढ़ा कर कोविड को मात दे दी है। लेकिन भारत कर्णधार कुछ अन्य आवश्यक कामों में लगें रहें, जो कि इंसानी जान से भी जरूरी थे। परिणाम आप सबके सामने है,हर मोहल्ले से चीत्कार आ रही है, किसी ने अपने भाई को खोया, तो कोई पुत्र वियोग में है। इस महामारी ने स्पैनिश बुखार में हुई त्रासदी की यादें ताजा कर दी। स्पैनिश फ्लू सन 1918 में पूरे विश्व में फैली एक महामारी थी जिसे 1918 की फ्लू महामारी भी कहते हैं। यह जनवरी 1918 में पैदा हुई और दिसम्बर 1920 तक चली और इसने 50 करोड़ लोगों को संक्रमित किया जो उस समय की दुनिया की आबादी का एक चौथाई थीं। इससे मरने वालों की संख्या अनुमानतः 5 करोड़ के आसपास थीं।चिकित्सा संसाधनों के अभाव में अपनों को मरते देकर चारों ओर सरकार को निंदा झेलनी पड़ रही है। आज सरकार के घोर समर्थक भी आलोचना करते नज़र आ रहे है। सरकार को चाहिए कि दलगत राजनीति से उठकर कोविड19 से लड़ने के लिए सामुहिक प्रयास करें, सभी प्राइवेट अस्पतालों का अस्थायी रूप से अधिग्रहण कर युद्ध स्तर पर चिकित्सा सेवा उपलब्ध कराएं, कालाबाजारी करने वालों के लिए कड़ा कानून बनाकर सीधे जेल भेजा जाए,चाहे वह कितना भी असरदार हो। किसी भी तरह लोगों की जान बचाई जाएं, चाहें उसके लिए देश को व्यवस्था के लिए सेना के हवाले क्यों न करना पड़े।

शकील अहमद सैफ