जुमलेबाजी की भेंट चढ़ा दिल्ली गेट का जीर्णोद्वार
बदनाम खबरची में आज रूबरू होंगे गाजियाबाद के इतिहास से, सन 1740
में मुगल वजीर ग़ाज़ी-उद्-दीन द्वारा बसाये गये इस शहर को संस्थापक द्वारा ग़ाज़ीउद्दीननगर नाम दिया गया, उन्होंने शहर मे एक विशाल ढांचे का निर्माण करवाया जिसमे 120 कमरे और इंगित मेहराबें थीं,अब इस निर्माण का सिर्फ् कुछ हिस्सा ही बचा है, जिसमे चार मुख्य दरवाजे दिल्ली गेट, सिहानी गेट,डासना गेट व घंटाघर के साथ ही चार दिवारी के कुछ भाग, इसमें से सिहानी गेट का अस्तित्व देख-रेख के अभाव में समाप्त हो चुका है,गाजियाबाद के संस्थापक ग़ाज़ी-उद्-दीन का मकबरा जी टी रोड पर मौजूद है, लेकिन संरक्षण की स्थिति बहुत बुरी है, जिसकी तरफ़ से नगरवासी व प्रशासन आँखे बंद किये बैठे है, नगर की एंट्री के मुख्य चार गेटों में से बचे तीन गेट घंटाघर एवं डासना गेट थोड़ा ठीक अवस्था में है, लेकिन दिल्ली गेट जर्जर अवस्था में पहुंच चुका है, साथ ही उसके अंदरूनी भागों पर अवैध कब्जों ने दिल्ली गेट की हालत और पतली कर दी है, लुप्त प्रायः हो रहे ऐतिहासिक विरासत "दिल्ली गेट" का यदि समय रहते जीर्णोद्धार नहीं कराया गया तो शायद यह भी सिहानी गेट की तरह काल के गाल में समा जाएगा।
लगभग पौने दो साल पहले अखबारों के समाचारों की सुर्खियां थी, की शहर के तीन गेट, जवाहर गेट, दिल्ली गेट और डासना गेट के दिन अब बहुरने वाले हैं, नगर निगम की पहल पर अब शहर की विरासत को सहेजते हुए नगर निगम का निर्माण विभाग मुगल वजीर ग़ाज़ी-उद्-दीन के एतिहासिक गेटों का जीर्णोद्धार कराएगा, नगर निगम के तत्कालीन मेयर आशु वर्मा की पहल पर निर्माण विभाग के इंजीनियर तीनों गेटों की रिपेयरिंग, पेंटिंग और लाइटिंग का एस्टिमेट भी तैयार कर लिया था,तीनों गेटों पर 10-10 फीट ऊंचाई तक रेड स्टोन लगाने की योजना बतायी गई थी,घोषणा के अनुसार इन गेटों के कायाकल्प पर करीब 38 लाख रुपया खर्च किये जाने का दावा किया गया था,साथ ही बड़े जोर शोर से कहा गया था कि 2017 के स्वतंत्रता दिवस से पहले घंटाघर समेत तीनों गेट तिरंगी रोशनी में नहाए हुए नजर आने लगेंगे।
दिल्ली गेट के जीर्णोद्धार की घोषणा को पौने दो वर्ष से अधिक बीत चुके हैं, 2017,2018 का स्वतन्त्रता दिवस भी बीत चुका है, शहर को नई मेयर के रूप में तेजतर्रार मेयर आशा शर्मा भी मिल चुकी है,नगर निगम भी अपनी घोषणा को शायद भूल गया है, 38 लाख का बजट भी कहीं गुम हो गया है, और हमारे शहर की आन- बान-माने जाने वाला ऐतिहासिक दिल्ली गेट उसी जर्जर अवस्था में अपने जीर्णोद्धार के इंतजार में आखरी सासें ले रहा है, और शहर के जागरूक नागरिक, नेता चुनाव-चुनाव खेल रहे है,और हम अपने शहर की पहचान धीरे धीरे इसी प्रकार समाप्त कर देंगे, शायद दिल्ली गेट की किस्मत इतनी अच्छी नहीं, कि कोई सन्दीप त्यागी आकर इस मुद्दे पर आंदोलन करें।
आजकल एक शब्द बड़े जोरों से प्रचलन में है "जुमलेबाज" दिल्ली गेट का जीर्णोद्वार भी "जुमलेबाजी" का शिकार हो गया, इस शहर के नागरिको व सामाजिक संस्थाओं की याददाश्त बहुत कमजोर है,वह शहर विकास के लिए राजनेताओं द्वारा की गई "जुमलेबाजी" को भूल जाते हैं। अब रही बात घोषणाकर्ता "जुमलेबाज" की तो भाई "जुमलेबाज" तो "जुमलेबाज" है उसका क्या भरोसा ?
शहर की ऐतिहासिक विरासत को सजोने के लिए सामाजिक संस्थाओं, जागरूक नागरिकों व राजनीतिक कार्यकर्ताओं को मुहिम चलाते रहनी चाहिए, अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब शहर के ऐतिहासिक स्वरूप को बनाए रखने के दायित्व निभाने वाले नगर निगम, जिला प्रशासन व जीडीए जैसी संस्थाओं की लापरवाही के कारण इस शहर का ऐतिहासिक महत्व इतिहास की किताबों में दबकर रह जायेगा।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
मेरी कोशिश है कि यह सूरत बदलनी चाहिए।