बदजुबानी-बेलगमी ने सारी मर्यादायें तार तार की।
बदनाम खबरची में आज बात करेंगे नेताओं के बड़बोलेपन की, राजनीति के गिरते स्तर की, चुनावी प्रचार के दौरान राजनीतिक लोगों की बेलगाम-बदजुबानी की एवं चुनाव आयोग द्वारा मजबूरी में उठाए गए सख्त कदमों की की।
केंद्र सरकार में मंत्री एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री जैसे सम्मानित पदों को शोभित करने वाले संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों अथवा संवैधानिक पदों पर महत्वपूर्ण दायित्वों को निभाने वालो के विषय में यदि देश का चुनाव आयोग उनकी बेलगाम जुबान पर नकेल डालने का कार्य करें तो यह भारतीय राजनीति में एक काला धब्बा कहां जाएगा।
जी हाँ हम बात कर रहे है, कल 15 अप्रैल 19 को मुख्य चुनाव आयुक्त द्वारा केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी, पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री मायावती, प्रदेश के महत्वपूर्ण मन्त्रालयो में अपना योगदान देने वाले तहजीब का लबादा ओढ़े आज़म खान एवं प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के भाषणों पर 72 घन्टे व 48 घन्टे रोक लगाकर दण्डित करने की,
संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों का दंडित होना इस देश के लिए शर्म की बात है,दूसरी ओर इसे राजनीतिक तौर पर आ रही गिरावट के तौर पर भी देखा जा सकता है,पहले भी राजनीति में आलोचना एवं आत्म आलोचना खूब होती थी,लेकिन एक स्तर तक, कभी किसी भी राजनीतिक व्यक्ति ने चाहे वह इंदिरा गांधी ,लाल बहादुर शास्त्री शास्त्री, अटल बिहारी वाजपेई, गुलजारी लाल नंदा जैसे कोई भी दिग्गज हो लेकिन मजाल है किसी ने किसी के बारे में कभी अपशब्द बोले हो,आखिर राजनीति में शब्दों की गिरावट क्यों आ रही है? यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है,हम अपनी युवा पीढ़ी को एक ओर सभ्य बनाना चाहते हैं, दूसरी ओर उसे बेलगामी और बदजुबानी सिखा रहे हैं जो कि भारतीय संस्कृति के लिए अच्छे संकेत नहीं है।
आइये कुछ बेलगाम बयानों की एक बानगी पर नज़र डालते है...
पिछले दिनों भाजपा के नामचीन नेता ने एक महिला नेत्री को वेश्या कहा,
उत्तर प्रदेश के एक नेता ने प्रियंका गांधी को साइबेरियन पक्षी कहा, उन्नाव रेप में भाजपा विधायक को बचाया गया,
कठुआ रेप पर रैली निकाली गई, हिमांचल प्रदेश में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को मां की गाली दी गयी, अपनी जान गवाने वाली वरिष्ठ पत्रकार
गौरी लंकेश को कुतिया कहा गया,
सोनिया गांधी को बार डांसर, इंदिरा को रखैल किसी को 50 करोड़ की गर्लफ्रेंड किसी को जर्सी गाय जैसी महान शब्दावली से नवाजा गया, यह तो एक बानगी भर थीं, इसके अलावा देश में आजादी के नाम पर पता नहीं क्या-क्या हो रहा है,लगता है हम आजादी का मतलब भूल गए है, क्या आजादी का अर्थ बेलगामी,बदजुबानी होता है,चुनावों में अपने प्रतिद्वंद्वी को गालियों से नवाजना कहा की सभ्यता है ? राजनीति में एक कहावत है कि यहां कोई दुश्मन कोई दोस्त नहीं होता, ऐसे कई उदाहरण देखे गए है, उत्तर प्रदेश में पिछले दिनों एक दूसरे के कट्टर विरोधी समझे जाने वाले आज मिल कर चुनावी मैदान में दिखाई दे रहे है,देश पहले भी चलता था, चुनाव भी होते रहे है,लेकिन व्यक्तिगत और अमर्यादित शब्दावली का प्रयोग कभी नहीं किया गया, हमारे नेताओं को भारतीय संस्कृति,मूल्यों का ध्यान रखते हुए अपनी वाणी पर नियंत्रण अवश्य ही रखना चाहिए।
दुश्मनी लाख सही ख़त्म न कीजे रिश्ता
दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिए