रिश्तों में होता क़त्ल, संबंधों में लगी सेंध ?
 















रिश्तों में होता क़त्ल, संबंधों में लगी सेंध ?


प्यार मोहब्बत बन रही हैं, बीते जमाने की रीत।


समाज के ढ़ाचे को ज़माने की पता नहीं कौन सी हवा लगी हैं। कि अपने ही अपनो के दुश्मन बनकर काल बन जाते हैं। कलयुग में समाप्त प्राय हो रहे रिश्ते, निकटतम रिश्तो में पैदा हो रही नफरत। कुछ ताजा घटनाओं का उल्लेख करूँगा। दिनांक 26 अक्टूबर 2020 को गाज़ियाबाद जनपद के मोदीनगर की संजयपुरी कॉलोनी में  देर रात छोटे भाई राहुल उर्फ कालू ने अपने दोस्त के साथ मिलकर बड़े भाई राजकमल उर्फ पारुल की गोली मारकर हत्या कर दी। छोटे भाई ने बड़े भैया को फोन करके संपत्ति विवाद सुलझाने की बात कहकर घर के बाहर बुलाया था। हत्या करने के बाद दोनों आरोपी हवाई फायरिंग करते हुए फरार हो गए।
दिनांक 20 अक्टूबर 2020 को गाज़ियाबाद के विजयनगर क्षेत्र में रुपयों के विवाद में सौतेले भाई रोबिन सिंह द्वारा छोटे भाई अतर सिंह की सरिया मार कर हत्या।
28 सितम्बर 2020 रुपये न देने पर गाजीपुर जिले के गाँव बीरभानपुर निवासी रामाशीष (46) को उसके बेटे राहुल ने पीट—पीटकर मार डाला और उसका शव घर में ही गड्ढा खोदकर गाड़ दिया। दिनांक 20 अगस्त 2020 को लखनऊ की पॉश रेलवे कॉलोनी गौतम पल्ली में भारतीय रेल सेवा के अधिकारी के घर में उनकी पत्नी और बेटे की गोली मारकर हुई हत्या उनकी कक्षा 9 में पढ़ने वाली 16 साल की शूटर बेटी ने कर दी। दिनांक 23 अप्रैल 2020 उत्तर प्रदेश स्थित जौनपुर जिले के नेवढिया थाना क्षेत्र में ममता का गला घोट कर सगे बेटे लाल चन्द पाल ने फावड़े से कई वार कर मां श्रीमती बागेसरा देवी को मौत के घाट उतार दिया और शव को घर में गड्ढा खोदकर कर दबा दिया। यह कुछ बानगियां थी दरकते रिश्तो की, इसके अलावा आये दिन इस प्रकार के समाचार आम बनकर रह गए हैं। रिश्तों में कोई गर्माहट नहीं दिखाई दे रही, अपने सगे  गुस्सेल बन रहे बड़े-बड़े अपराधों को अंजाम दे रहे है, माँ बाप उन्हें मूर्ख नजर आते है, बड़ो के आदेशों की अवहेलना बच्चों का पसंदीदा कार्य हैं। आखिर किस पर भरोसा किया जाए। जिन कन्धों पर बुढ़ापे के भरोसा किया जाता है। वही जीवन के लिये खतरनाक साबित हो रहें हैं। उक्त घटनाएं बताती है कि समाज बदल रहा है, समाजिक ढांचा चरमरा रहा है, हम समाजिक ताने बाने को तोड़ कर आदिम युग में जा रहे हैं। एक समय था, जब लोग परिवार में रहना पसंद करते थे, जिसका जितना बड़ा परिवार होता वो उतना ही सम्पन्न और सौभाग्यशाली माना जाता था और परिवार में मेल मिलाप होता था, संपन्नता होती थी, समाज में संपन्नता की निशानी परिवार की प्रतिष्ठा से लगाई जाती थी, उस दौर में व्यक्ति की प्रधानता नहीं थी, बल्कि परिवारों की प्रधानता थी। संयुक्त परिवारों के उस दौर में परिवार के सदस्यों में प्रेम, स्नेह, भाईचारा और अपनत्व का एक विशिष्ट माहौल रहता था। इस माहौल और संयुक्त परिवारों का फायदा परिवार के साथ पूरे समाज को मिलता था। और जो पूरे समाज और राष्ट्र को एकसूत्र में बांधने का संदेश देता था। सच! कितना अपनापन और आत्मिक स्नेह था उस दौर में! यह वह समय था, जब किसी व्यक्ति की चिंता उसकी चिंता न बनकर पूरे परिवार की चिंता बन जाती थी,और सहयोग से सब मिलकर उस चिंता को दूर करने का प्रयास करते थे, ऐसे समय में रिश्तों में अपनापन था और लोग रिश्ते निभाते थे ढोते नहीं थे, आज बन रहे एकल परिवारों ने व्यवस्था को बदलकर रख दिया है, अब वह दौर नहीं रहा, आज परिवार छोटे हो गए है, और सब लोग स्वयं में केंद्रित होकर जी रहे है। पहले व्यक्ति पूरे परिवार के लिए जीता था, पर आज व्यक्ति अपने बीवी-बच्चों के लिए जीता है।आपाधापी के इस दौर में जीवन से संघर्ष करता हुआ व्यक्ति आज रिश्तों को भूल गया है। वह अपने बच्चों को सुविधाएं तो खूब उपलब्ध कराता है, लेकिन संस्कार नहीं दे पा रहा, समय उसके पास होता नहीं।भावनाओं का जाल कभी बुना नहीं गया, कहा से आएंगी भावनाएं, दादी नही, दादा नहीं, ताऊ चाचा, बुआ बीते जमाने की बात हो गयी, बचा है, तो मात्र टीवी, इंटरनेट, फेसबुक, ट्यूटर,गेम, हुक्का वार, क्लब, डिस्को और न जाने क्या-क्या....
आज के बच्चों को अपने चाचा, मामा, मौसी, ताया के लड़के-लड़की अपने भाई-बहन नहीं लगते। उन्हें इन रिश्तों की मिठास और प्यार का अहसास ही नहीं हो पाता है, क्योंकि कभी उन्होंने इन रिश्तों की गर्माहट को महसूस ही नहीं किया है। यदि समय रहते हमने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो वह दिन दूर नहीं जब मां-बाप अपने बच्चों से, भाई- भाई से पति-पत्नी से ,पत्नी-पति से भय तो खाने ही लगेंगे, साथ ही कब एक-दूसरे को काल के गाल में पहुंचा देंगे पता ही नहीं रहेगा, मनुष्यों और पशु में अन्तर समाप्त हो जाएगा। ऋषि-मुनियों,साधु-संतों, पीर-पैगंबरों और प्रबुद्ध नागरिकों को आगे आकर भारत वर्ष की इस पावन धरा पर भारतीय मूल्यों की रक्षा करने के  आगे आना ही होगा, ताकि भारत की सांस्कृतिक विरासत व आने वाली पीढ़ी को बचाया जा सके।
दिल में पैदा अरमानों का यूं भी खून होता है।
अब नोनिहालो की हालत पर आईना भी रोता है।



 

 



 



 















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