बदनाम खबरची, वैवाहिक समारोहों में बर्बाद अन्न की बर्बादी रोकने की महती आवश्यकता।

वैवाहिक समारोहों में बर्बाद अन्न की बर्बादी रोकने की महती आवश्यकता।


समारोहों में बचे खाने को गरीबों का निवाला बनाएं सामाजिक संगठन।


बदनाम खबरची में पेश है, किस्सा-ए- अन्न बर्बादी, आजकल शादी एवं वैवाहिक समारोह में तथाकथित नए-नए रईस शानो-शौकत दिखाने के नाम पर 50 से लेकर 200 प्रकार तक के स्वादिष्ट व्यंजन बनवा रहे है, इस प्रचलन की होड़ जोरों पर है, किसी भी शादी का स्तर उसके मीनू में मौजूद ज्यादा में मौजूद ज्यादा व्यंजनों से नापा जाता है, जितने ज्यादा व्यंजन इतनी ज्यादा वाह-वाह......कुछ शादियों में तो इतने प्रकार प्रकार के व्यंजन होते है, कि आमंत्रित मेहमान सभी व्यंजनों का स्वाद भी नहीं ले पाते हैं।


भारतीय संस्कृति में अन्न को देवता कहा जाता है, और यही कारण है कि भोजन झूठा छोड़ना या उसका अनादर करना पाप माना जाता है। मगर आधुनिकता की अंधी दौड़ में हम अपना यह संस्कार भूल गए हैं,यही कारण है कि वैवाहिक आयोजनों के साथ होटल-रेस्त्रां जैसे स्थानों में सैकड़ों टन खाना रोज बर्बाद हो रहा है,भारत ही नहीं, समूची दुनिया का यही हाल है, एक तरफ अरबों लोग दाने-दाने को मोहताज हैं, कुपोषण के शिकार हैं, वहीं रोज लाखों टन खाना बर्बाद किया जा रहा है, दुनियाभर में हर वर्ष जितना भोजन तैयार होता है, उसका एक तिहाई यानी लगभग एक अरब 30 करोड़ टन बर्बाद चला जाता है,बर्बाद जाने वाला भोजन इतना होता है कि उससे दो अरब लोगों की खाने की जरूरत पूरी हो सकती है,एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि भारत में बढ़ती सम्पन्नता के साथ ही लोग खाने के प्रति असंवेदनशील हो रहे है, खर्च करने की क्षमता के साथ ही खाना फेंकने की प्रवृत्ति भी बढ़ रही है, आज भी देश में विवाह स्थलों के पास रखे कूड़ाघरों में 30 से 40 प्रतिशत तक खाना फेक दिया जाता है, विश्व खाद्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार हर सातवां व्यक्ति भूखा सोता है, अगर इस बर्बादी को रोका जा सके तो कई लोगों का पेट भरा जा सकता है,विश्व भूख सूचकांक में भारत का 67वां स्थान है, देश में हर साल 25.1 करोड़ टन खाद्यान्न का उत्पादन होता है, लेकिन हर छटा भारतीय भूखा सोता है, यह आंकड़े हमारे लिए दुर्भाग्यपूर्ण है।
  अमीरों की प्रवृत्ति को तो हम रोक नहीं सकते लेकिन उनके द्वारा फेंके जाने वाले भोजन को मैनेजमेंट करके गरीबों के मुंह का निवाला अवश्य ही बनाया जा सकता है, यदि सामाजिक संस्थाएं, एनजीओ वैवाहिक समारोह स्थलों, होटल-रेस्त्रांओ में बर्बाद होने वाले अन्न को एक मुहिम के तहत इकट्ठा कर भूखे पेट लोगों तक पहुंचाने की ठान ले तो शायद भारत मां के किसी भी लाल को भूखे पेट नहीं सोना पड़ेगा।
इस की पहल के लिए सरकार को प्रयास करके सामाजिक संगठनों को आगे लाना चाहिए।
अमीर परेशान है तुझसे, तू उसके पास नहीं आती ए-भूख।
गरीब परेशान है तुझसे, तू उसके पास से नहीं जाती ए-भूख।