देश के चीफ़ जस्टिस की आबरू को तार-तार करने का असफल दुःसाहस।
देश के इतिहास में एक और काला अध्याय जुड़ा

देश के चीफ़ जस्टिस की आबरू को तार-तार करने का असफल दुःसाहस।

 

भारत के इतिहास में एक काला अध्याय उस दिन और जुड़ गया जिस दिन देश के चीफ़ जस्टिस की आबरू को तार-तार करने का प्रयास देश विरोधी एवं षड्यंत्रकारी ताकतों द्वारा किया गया, किसी भी षड्यंत्रकारी शक्ति अथवा ताकत द्वारा आज तक इतना दुःसाहस करने की हिम्मत नहीं हुई कि वह हमारे चीफ़ जस्टिस की ओर ही उंगली उठाने लगे, हमारे लिए शर्म की बात है कि अभी तक वह उंगली सही सलामत है...

 चीफ़ जस्टिस व्यक्तिगत मामला होने के कारण खामोशी की चादर ओढ़े हुए है, तो सरकार चुनाव-चुनाव खेलने में व्यस्त है,और देश विरोधी ताकते देश की इज्ज़त से खेल रही है।

ज्ञात रहे सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस  रंजन गोगोई पर पिछले सप्ताह उनकी पूर्व जूनियर असिस्टेंट ने यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे कुछ वेबसाइट्स में प्रकाशित इस ख़बर के बाद सुप्रीम कोर्ट में पिछले शनिवार को तीन जजों की बेंच बैठी, सुप्रीम कोर्ट से रिपोर्टिंग करने वाले वरिष्ठ पत्रकार सुचित्र मोहंती के मुताबिक चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस संजीव खन्ना की तीन जजों की बेंच ने अवकाश के दिन मामले पर गौर किया,यौन उत्पीड़न के आरोप पर चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई का कहना है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता बहुत गंभीर ख़तरे में हैं और यह न्यायपालिका को अस्थिर करने की एक 'बड़ी साजिश' है, चीफ़ जस्टिस का कहना है कि यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिला के पीछे कुछ बड़ी ताक़तें हैं, वह कहते हैं कि अगर न्यायाधीशों को इस तरह की स्थिति में काम करना पड़ेगा तो अच्छे लोग कभी इस ऑफ़िस में नहीं आएंगे,

आरोप लगाने वाली महिला ने एक चिट्ठी सुप्रीम कोर्ट के सभी 22 जजों को भेजी थी, जिसमें जस्टिस गोगोई पर यौन उत्पीड़न करने, इसके लिए राज़ी न होने पर नौकरी से हटाने और बाद में उन्हें और उनके परिवार को तरह-तरह से प्रताड़ित करने के आरोप लगाए थे,

चीफ़ जस्टिस ने चार वेबसाइटों का नाम लिया स्क्रॉल, लीफ़लेट, वायर और कारवां जिन्होंने आपराधिक इतिहास वाली इस महिला के असत्यापित आरोपों को प्रकाशित किया और कहा कि इनके तार आपस में जुड़े हैं, इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई के ख़िलाफ़ लगाए गए असत्यापित आरोप पर मीडिया से रिपोर्टिंग में संयम और समझदारी बरतने को कहा है, शीर्ष अदालत में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बीते शनिवार को इसका उल्लेख करते हुए कहा कि यह एक 'गंभीर और बेहद ज़रूरी सार्वजनिक महत्व का मामला' है, इसलिए इसे सुना जाना चाहिए,चीफ़ जस्टिस की अगुवाई वाली बेंच ने इस आरोप पर कोई आदेश पारित नहीं किया और मीडिया से न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए संयम बरतने के लिए भी 

कहा चीफ़ जस्टिस ने कहा कि यह आरोप बेबुनियाद हैं,चीफ़ जस्टिस ने कहा कि जिस महिला ने कथित तौर पर उन पर आरोप लगाए हैं, वह आपराधिक रिकॉर्ड की वजह से चार दिनों के लिए जेल में थीं, और कई बार उन्हें अच्छा बर्ताव करने को लेकर पुलिस से हिदायत भी मिली थी।

चीफ़ जस्टिस पर लगायें गये आरोप किसी बड़ी साजिश का हिस्सा नज़र आ रहे है, हमारी न्याय पालिका को बदनाम करके देश को एक काला अध्याय देने वाले षड्यंत्रकरियो के विरुद्ध उच्च स्तरीय गहन और गोपनीय जाँच होनी चाहिए।