(बदनाम खबरची)भाजपा असहज स्थिति में,एनडीए में फूट के संकेत ?






जदयू ने फिर बिहार को विशेष दर्जा देने की मांग उठाई।


भाजपा असहज स्थिति में,एनडीए में फूट के संकेत ?


बिहार में सत्तारूढ़ जदयू ने अपने सहयोगी दल भाजपा को चुनावों के आखिरी चरण में एक बार फिर झटका देते हुए बिहार राज्य को विशेष दर्जा देने की अपनी पुरानी मांग को पुनः उठा लिया है, ज्ञात रहे बिहार को विशेष राज्य देने की मांग का भाजपा पुरजोर विरोध करती रही है।
जेडीयू फिर से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग के साथ ही भाजपा के चुनावी एजेंडे से परे हट कर  राष्ट्रवाद के उलट विकास कार्यों की बात कर रही है, जदयू ने अपने चुनावी मुद्दे में विकास और बेरोजगारी को महत्वपूर्ण स्थान दिया हुआ है, जदयू का अपने सहयोगियों के साथ सुर में सुर न मिलना देश की राजनीति में नए बदलाव की ओर इशारा कर रहा है ?
हाल ही में जेडीयू के प्रधान महासचिव श्री के.सी. त्यागी ने बिहार के मतदाताओं से अपील की है, कि उनकी पार्टी के कम से कम 15 लोगों को सांसद बनाएं, ताकि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग संसद में की जा सके,
इससे पहले जेडीयू एमएलसी ग़ुलाम रसूल ने कहा था कि 2019 में एनडीए सत्ता में आएगा तो बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की मांग फिर से रखी जाएगी, जब से जेडीयू ने आरजेडी का साथ छोड़ एनडीए में फिर से आने का फ़ैसला किया था तब से इस मांग को लेकर वो ख़ामोश थी, चुनाव के आख़िरी चरण में जेडीयू की इस मांग को नीतीश कुमार की दबाव बनाने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है, जानकारों का मानना है कि विशेष राज्य के मुद्दे का फिर से उठना भाजपा को असहज स्थिति में डाल सकता है, क्योंकि पार्टी के वरिष्ठ नेता वित्तमंत्री अरूण जेटली पहले ही विशेष दर्जे की मांग को खारिज करते हुए कह चुके हैं, कि ऐसी मांगों का दौर अब समाप्त हो चुका है, ज्ञात रहे बिहार में लोकसभा की 40 सीटें है,एवं भाजपा-जेडीयू 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, साथ ही लोक जनशक्ति पार्टी के हिस्से में छः सीटे आई है, जदयू के वरिष्ठ नेता व प्रधान महासचिव
श्री के.सी. त्यागी ने अपने बयान में कहा है कि ''15वें वित्त आयोग के सामने हम फिर से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग रखेंगे, बिहार के विकास के लिए यह मांग स्थायी संशोधन की तरह है, श्री त्यागी के बयान का जेडीयू के बिहार प्रमुख वशिष्ठ नारायण सिंह ने भी समर्थन किया है,बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी15वें वित्त आयोग की बैठक में बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग दोहराते हुए कहा था, "यहां की समस्या का समाधान विशेष दर्जा मिलने से ही संभव है,अन्य राज्यों की तुलना में यहां प्रति व्यक्ति आय कम है, लेकिन व्यक्तिगत काम के द्वारा लोगों की आमदनी बढ़ी है, जो आंकड़ों में प्रतीत नहीं होता है, देखा जाए तो बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग कोई नई नहीं है, लेकिन इस मुद्दे को लेकर यहां राजनीति भी खूब हुई है, इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि राज्य में सत्ताधारी जदयू इस मांग को बिहार की जनआकांक्षा से जोड़कर इसे राज्य के हर तबके के पास पहुंचाने में सफल रही है, जदयू ने इस मांग को लेकर न केवल बिहार में, बल्कि दिल्ली तक में अधिकार रैली निकाली थी, बिहार के सभी राजनीतिक दलों ने संयुक्त रूप से लगभग नौ वर्ष पहले 31 मार्च, 2010 को इस मामले का प्रस्ताव बिहार विधान परिषद से पारित कर केंद्र सरकार को भेजा था, इसके बाद भी बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिलता देख 23 मार्च, 2011 को राजग के सांसदों ने प्रधानमंत्री को ज्ञापन सौंपा और 14 जुलाई को जदयू के एक शिष्टमंडल ने सवा करोड़ बिहार के लोगों के हस्ताक्षरयुक्त ज्ञापन प्रधानमंत्री को सौंपा था,लेकिन जब बिहार की सरकार पोर्ट हो कर भाजपा के पाले में गई,तब से यह मुद्दा ठन्डे बस्ते में डाल दिया गया, लेकिन चुनाव के आखिरी चरण में जदयू द्वारा भाजपा की विचारधारा के विरुद्ध जा कर इस मुद्दे को पुनः उठाना,एनडीए में फूट के संकेत है, कही ऐसा तो नहीं कि नीतीश कुमार विपक्षी पार्टियों के सम्पर्क में आकर प्रधानमंत्री बनने का सपना सँजोने लगें हो......?