(बदनाम खबरची) उ.प्र.में गठबंधन पर संकट के बादल।

उ.प्र.में गठबंधन पर संकट के बादल।


बसपा सुप्रीमो का बयान जल्दबाजी में उठाया गया कदम ?


बदनाम खबरची में आज बात करेंगे बसपा प्रमुख कुमारी मायावती द्वारा गठबंधन को लेकर दिए गए बयानों की, गठबंधन पर अविश्वास व्यक्त करने की एवं उपचुनावों में अपने बल पर चुनाव लड़ने की घोषणा की।
कभी कभी मनुष्य जोश में होश खो देता है, 2014 के चुनावों में सूपड़ा साफ हुई बसपा ने सपा प्रमुख अखिलेश यादव और रालोद के अजीत चौधरी के साथ आने से 10 लोकसभा सीटे क्या जीती बसपा सुप्रीमो गलतफहमी का शिकार हो गई, और जल्दबाजी में गठबंधन की आलोचना ही नहीं की, बल्कि सपा के वोट बैंक पर आरोप भी जड़ दिया।
बसपा यूपी के पदाधिकारियों, सांसदों व लोकसभा प्रत्याशियों के साथ दिल्ली में की गई समीक्षा बैठक हुई में पार्टी ने लोकसभा चुनावों में हुई हार के कारणों पर चर्चा की और कहा कि सपा से गठबंधन का बसपा को कोई लाभ नहीं मिला, कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए कु.मायावती ने कहा कि गठबंधन बेकार था, उन्होंने कहा कि यादव वोट हमें नहीं मिले, लेकिन हमारे वोट उनके पास गए,बसपा प्रमुख ने कहा कि समाजवादी पार्टी ने केवल वहीं चुनाव जीता, जहां मुसलमानों ने उनके लिए भारी मतदान किया, यहां तक कि अखिलेश यादव का परिवार भी यादव वोटों को अपनी ओर नहीं खींच पाया।
राजनीतिक पंडित बसपा सुप्रीमो के इस बयान को जल्दबाजी में उठाया गया कदम बता रहे है, चर्चाएं आम हैं की बसपा प्रमुख अपना वोट ट्रांसफर कराने की हैसियत में अब नहीं रही फलस्वरूप सपा के प्रत्याशियों को बसपा के वोट बैंक ने वोट नहीं किया जिसका नुकसान समाजवादी पार्टी को  उठाना पड़ा सपा को मात्र 5 सीटे मिल पाई,जबकी मोदी लहर के चलते 2014 में भी समाजवादी पार्टी 5 सीटे तो बिना गठबंधन अपने बलबूते जीत ली थी,जबकि बसपा का सूपड़ा साफ हो गया था। यदि बसपा अपने वोट बैंक को सपा प्रत्याशियों की तरफ ट्रांसफर करा पाती तो संभव था 80 में से 50 से 60 सीटें तक सपा-बसपा के खाते में पहुंच सकती थी ?
चर्चा-ए-आम है कि बसपा के दलित वोट बैंक ने बसपा प्रत्याशियों को तो वोट कर दिया, लेकिन जहां बसपा प्रत्याशी नहीं था वहां भाजपा को वोट कर गया, गठबंधन का असली फायदा बसपा को ही मिला, पिछले चुनाव में खाता भी ना खोल आने वाली बसपा मोदी लहर में भी 10 सीटें जीत पाने में यदि कामयाब रही तो उसके पीछे समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव की कड़ी मेहनत कही जाएगी, ऊपर से मायावती द्वारा जल्दबाजी में गठबंधन के विरुद्ध बयान देकर अपरिपकक्ता का परिचय दिया गया है, लेकिन इतना होने पर भी सपा प्रमुख अखिलेश यादव द्वारा मायावती के बयान पर कोई टिप्पणी ना करना उनकी गंभीरता दर्शाता है,यदि बसपा प्रमुख अपनी जिद पर कायम रहते हुए उपचुनाव में अकेले दम पर लड़ने की हिमाकत करती हैं, तो चुनाव परिणाम उनको हकीकत से रूबरू करा देंगें।