(बदनाम खबरची) लिव-इन-रिलेशनशिप का बढ़ता प्रकोप।






लिव-इन-रिलेशनशिप का बढ़ता प्रकोप।

खतरे में भारतीय संस्कृति और सभ्यता।

 

देश में तेजी से फैल रही बीमारी लिव-इन-रिलेशनशिप,समलैंगिकता जैसी प्रवर्ति भारतीय संस्कृति और सभ्यता को निगलने पर आमादा है,भारतीय सभ्यता लिव-इन-रिलेशनशिप, यानी कि पर-स्त्री पुरुष संबंधों की इजाजत नहीं देती है, लेकिन सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव और पश्चिम देशों की सभ्यता के हावी होते इस दौर में फिल्मों और इंटरनेट के खुलेपन ने चाहे अनचाहे इसे स्वीकार करने पर मजबूर कर दिया है, आज भी कोई यह नहीं चाहता कि उसकी बहन बेटी अथवा परिवार की कोई लड़की किसी गैर लड़के के साथ अनैतिक संबंध रखें या बिना शादी किये किसी पुरूष के साथ रहे, अदालत ने बेशक लिव-इन-रिलेशनशिप को मान्यता दे दी है लेकिन भारत में अभी सामान्य स्तर पर ऐसे संबंधों को स्वीकृति नहीं मिल पाई है, लिव-इन-रिलेशनशिप को अदालत से मान्यता  मिलने के बाद कई तरह के सवाल सिर उठा कर कर खड़े हो गए हैं, ऐसे संबंधों को मान्यता के बावजूद अदालत ने लिव-इन-रिलेशनशिप टूटने की दशा में गुजारे भत्ते का अधिकार ना देने की बात कहकर स्पष्ट कर दिया है, कि ऐसे संबंध सामान्य नहीं है, सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि लिव-इन-रिलेशनशिप को वैवाहिक संबंधों की तरह नहीं लिया जा सकता,कुछ सप्ताह साथ रहने या फिर एक रात साथ बिताने से घरेलू संबंध विकसित नहीं होते है, ना ही वह परिवार का रूप ले सकते है,

लिव-इन-रिलेशनशिप पर किए गए अध्ययन पर नजर डाली जाए तो बहुत कम मामले ऐसे है, जिसमें संबंध चल पाते है, बीस प्रतिशत मामलों में ऐसे रिश्ते दो-चार महीने व साल बीतते बीतते टूट जाते हैं, लिव-इन-रिलेशनशिप पर बात करें तो ऐसे रिश्ते बनने की एक बड़ी वजह होती है,कि जिन प्रेमी युगलों को परिवार की मान्यता नहीं मिलती वह शादी के बगैर साथ रहने लगते है,बहुत से मामले ऐसे भी हैं जिसमें शादी परिवार की मर्जी से कर लेने वाले प्रेम संबंधों को भुला नहीं पाते और उन रिश्तो को पहले की तरह बनाए रखते है, ऐसे अनगिनत मामले है जिसमें पुरुष अपना परिवार होते हुए भी अन्य महिलाओं से संबंध बनाए हुए है,महानगरों में ऐसी महिलाओं की संख्या भी बहुत बड़ी है,जो अपना परिवार होते हुए भी अपने सहकर्मी के साथ अंतरंग रिश्ते बना लेती है, उन रिश्तो की उम्र की सीमा तो तय नहीं की जा सकती लेकिन निश्चित है,कि संबंधों को कभी भी ना खत्म होना ही होता है, जबकी वैवाहिक संबंध तो जीवन के बाद भी जिंदा रहते है, उदाहरण कोई भी विधुर कहता है कि मेरी स्वर्गीय पत्नी का नाम  शीला देवी था, या मेरा स्वर्गीय पति ...थे।

भारतीय सभ्यता में कुछ इस तरह का ढांचा हमारी हमारे बुजुर्गों ने बनाया है, की मात्र उन्हीं संबंधों को सम्मान मिलता है, जिनकी पृष्ठभूमि वैवाहिक रही है या समाज ने उस रिश्ते को मान्यता दी है, इसके अलावा प्रत्येक अनैतिक रिश्ते को समाज हेय दृष्टि से देखता है, भले ही कानून ने उसे मान्यता दे दी हो,भले ही बगैर शादी किए हुए साथ रहने को अपराध की श्रेणी में ना माना जाता हो,लेकिन सामाजिक ताने-बाने को इतनी आसानी से नहीं बदला जा सकता लिव-इन-रिलेशनशिप में साथ रहने वाले स्त्री पुरुषों का सवाल उतना बड़ा नहीं है क्योंकि यह हालात को अच्छी तरह समझते हुए खुद पर उठने वाले सवालों का सामना करने के लिए मानसिक रूप से तैयार होते है, सवाल यह है कि भारतीय ढांचे को तोड़कर विद्रोह कर रहे जोड़ें समाज को कहां ले जा रहे हैं क्या हम पूरी तरह से अपनी सभ्यता भूलकर पश्चिमी देशों की तर्ज पर चल पड़े है, यदि ऐसा है, तो आने वाली पीढ़ी के लिए संकेत है, रिश्तों के समाप्त होने का, कम से कम हमारी नजर में तो रिश्तो को तहस-नहस करने वाला साबित होगा, अभी भी समय है कि सामाजिक संस्थाओं को आगे आ आकर हमारी संस्कृति और सामाजिक ढांचे को बरकरार रखने हेतु सार्थक प्रयास करने चाहिए।


 

 



 



 















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