( बदनाम खबरची) सरकारी अस्पताल की सांठ-गाँठ से फल फूल रहें है,डायग्नोज सेन्टर।
सरकारी अस्पताल की सांठ-गाँठ से फल फूल रहें है,डायग्नोज सेन्टर।

 

डॉक्टरों की भ्रष्ट नीति के चलते लूट का शिकार हो रहें है,मरीज़।

 

 

   बदनाम खबरची में आज बात करेंगे गाज़ियाबाद के जिला सरकारी अस्पताल एमएमजी में व्याप्त भ्रष्टाचार,रिश्वत व कुव्यवस्था व डायग्नोज सेन्टरों के खेल का, यहां के सरकारी अस्पताल में भ्रष्टाचार अव्यवस्था व रिश्वत का बोल-बाला है। रिश्वत लेने के लिए बाकायदा कुछ दलाल सक्रिय रहते हैं कुछ कर्मचारी भी इस काम में लिप्त देखे जाते हैं, हालाकि प्रदेश के आला मंत्रियों,जिलाधिकारी व वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा समय-समय पर एमएमजी अस्पताल का निरीक्षण कर व्यवस्था दुरुस्त रखने की कवायद की जाती है,लेकिन सरकारी अस्पताल एक ऐसा नासूर बन चुका है जिसका इलाज संभव नहीं लगता। अस्पताल की अधिकतर जांच मशीनें खराब पड़ी रहती हैं या खराब बता दी जाती है, ताकि अस्पताल के आसपास चल रहे आधा दर्जन डायग्नोस सेंटरों के मालिकों को फायदा पहुँचा कर उनसे कमीशन के रूप में अतिरिक्त आय जुटाई जा सके व सरकारी डॉक्टरों की जेबे भर्ती रहें,गर्भवती महिला मरीजों को अस्पताल के बाहर चल रहें डाइग्नोस्टिक सेंटरों पर जाँच कराने के लिए मजबूर किया जाता हैं, एमएमजी अस्पताल के बराबर में स्थित शम्भू दयाल काम्प्लेक्स में चल रहे इन सेंटरों में सरकारी अस्पताल के मरीजों की भीड़ देखी जा सकती है, जिसमें अधिकतर गर्भवती महिलाएं होती है, इन महिलाओं के साथ आये तीमारदारों से जब बात की गई तो उन्होंने दबी जुबान में बताया कि सुबह डॉक्टर साहिबा ने अल्ट्रासाउंड तो किया लेकिन साथ ही कह दिया कि सरकारी मशीन का रिजल्ट अच्छा नहीं आ रहा है, बगल वाले अल्ट्रासाउंड केंद्र से एक अल्ट्रासाउंड और करालो,ऑपरेशन से लेकर मेडिकल कराने तक विकलांग जांच से लेकर मेडिकल बनवाने तक डॉक्टरों की पौ-बारह रहती है। यहाँ तक कि आप रिश्वत के बल पर झूठा मेडिकल भी बनवा सकते है,

 दिल की जांच करने वाली इको मशीन पिछले दो साल से खराब है, दिल के गरीब मरीज कहा जाये, एक पत्रकार की गर्भवती पत्नी को थाईराड की बीमारी होने पर अस्पताल के डॉक्टर ने कहा कि थाइराइड का इलाज यहां नहीं होता है,किस बीमारी का इलाज होता है किस का नहीं ये तो डॉक्टरों के मुंड और जेब गर्म करने पर ही निर्भर है।

सरकार यदि वास्तव में सरकारी अस्पतालों के हालात बदलना चाहती है तो डॉक्टरों की सोच बदलनी होगी,उन्हें बताना होगा,अरे डॉक्टर साहब यहां बहुत गरीब मरीज अपनी आर्थिक मजबूरी के चलते आते हैं उनकी मदद करो सामाजिक बनो,पैसा ही कमाना हो तो इस पेशे में पैसा बहुत है सरकारी नौकरी से इस्तीफा देकर प्राइवेट प्रैक्टिस करो,अस्पताल खोलो, नर्सिंग होम बनाओ,खूब लूटो कोई नहीं रोक रहा। सरकार को चाहिए कि वह अस्पतालों की सभी जांच मशीनों को ठीक कराएं व उनकी लगातार मॉनिटरिंग करें,अस्पताल के पास चल रहे डायग्नोस्टिक सेन्टरों की जांच कराई जाए उनके 99 प्रतिशत मरीज सरकारी अस्पताल द्वारा विभिन्न प्रकारों से भेजे जाते है, अस्पताल में जगह-जगह रिश्वत मांगने वालों की शिकायत हेतु फोन नंबर प्रदर्शित किये जायें, मरीजों को जागरुक किया जाए,सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं व शिकायतें मिलने पर कड़ी कार्रवाई की जाए ताकि देश की गरीब जनता को भी थोड़ा सा स्वस्थ जीवन जीने का अधिकार प्राप्त हो सके,गाज़ियाबाद के विधायक व राज्य मंत्री श्री अतुल गर्ग के पास अब उत्तर प्रदेश का स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेवारी आ गयी है, उनका ध्यान अस्पताल के बाहर कुकरमुत्तों की तरह खुले इन डाइग्नोस्टिक सेंटरों की और आकर्षित अवश्य होना चाहिए, ताकि प्रदेश सरकार द्वारा गरीबों हेतु चलाई जा रही स्वस्थ सेवाओं का लाभ आम आदमी तक पहुँच सकें, भ्र्ष्टाचार व सांठ गाँठ में लिप्त कर्मचारियों/ डॉक्टरों पर पैनी नज़र रख कड़ी कार्यवाही समय की आवश्यकता हैं।

 

रहा चिकित्साशास्त्र जो जनसेवा का कर्म,

आज डॉक्टरों ने उसे बना दिया बेशर्म।