(बदनाम खबरची)गर्व:भारतीय मूल के अभिजीत बनर्जी को नोबेल।

गर्व:भारतीय मूल के अभिजीत बनर्जी को नोबेल।
भारतीय प्रतिभाओं को देश में जेल- विदेशों में सम्मान।


एक कहावत है "हीरे की कद्र जौहरी ही जानता है" जी हां यह कहावत चरितार्थ हुई है, अभिजीत बनर्जी के नोबेल पुरस्कार मिलने की घोषणा से,भारतीय मूल के अभिजीत बनर्जी हिंदुस्तान में तो जेल तक का सफर कर आये, लेकिन इनकी प्रतिभा को पहचाना अमेरिका ने,उन्होंने अपनी प्रतिभा के बल पर न केवल शिक्षा के क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित किए, प्रयोगशालायें स्थापित की बल्कि बहुत छोटी सी उम्र में अपने आपे को नोबेल पुरस्कार के लिए नामित भी करा लिया, यह हमारे लिए गर्व की बात तो है ही, साथ ही यह विषय है आत्म आलोचना का,आखिर क्यों भारतीय प्रतिभाएं देश विदेश में जाकर अपनी योग्यता का लोहा मनवाती हैं?
‌भारतीय मूल के अमरीकी अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी को
इस साल अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार दिए जाने के बाद उनका भारत के साथ रिश्ता यहां की प्रेस में हैड लाईनों बना हुआ हैं,अभिजीत बनर्जी भले ही भारत के नागरिक न हों, लेकिन उनकी शख्सियत में भारतीयता रची बसी हुई है,अभिजीत बनर्जी का जन्म मुंबई में हुआ था और उनकी पढ़ाई लिखाई पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर में हुई, जबकि उच्च शिक्षा के लिए व नई दिल्ली में रहे,उनके माता-पिता निर्मला और दीपक बनर्जी, इस देश के जाने माने अर्थशास्त्री रहे हैं, उनकी मां निर्मला मुंबई की थीं, श्री बनर्जी ने कोलकाता के साउथ प्वाइंट स्कूल से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद प्रेसीडेंसी कॉलेज से बैचलर डिग्री हासिल की इसके बाद वे जेएनयू चले आए, अर्थशास्त्र से एमए किया, बनर्जी ने जेएनयू की तारीफ करते हुए लिखा है,सच्चाई यह है कि मैं दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकॉनामिक्स गया था और मेरे पिता भी शायद यही चाहते थे कि मैं वहां जाऊं,लेकिन जब मैंने इन दोनों जगहों जेएनयू और दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स को देखा था मैंने अपना मन बना लिया था,जेएनयू की बात ही अलग थी, उसकी ख़ूबसूरती एकदम अलग तरह की थी, डी-स्कूल किसी भी दूसरे भारतीय संस्थान की तरह ही है, खादी या फ़ैब इंडिया का कुर्ता-पाजामा पहने छात्र जेएनयू के पत्थरों पर बैठकर ना जाने क्या-क्या बहस किया करते थे,हालांकि अभिजीत बनर्जी ने शायद ही कभी सोचा होगा कि जब उनके नाम की चर्चा दुनिया भर में हो रही होगी, उसके बैकग्राउंड में उनके यूनिर्वसिटी का नाम भी साथ-साथ चलेगा,यह जेएनयू यूनिवर्सिटी पिछले कुछ समय से मोदी समर्थक और भारतीय जनता पार्टी समर्थकों के निशाने पर रही है,
फ़रवरी, 16 में जब जेएनयू को लेकर हंगामा शुरू हुआ तभी अभिजीत बनर्जी ने हिंदुस्तान टाइम्स में एक लेख लिखा था- "वी नीड थिंकिंग स्पेसेज़ लाइक जेएनयू एंड द गर्वनमेंट मस्ट स्टे आउट ऑफ़ इट" यानि हमें जेएनयू जैसे सोचने-विचारने वाली जगह की ज़रूरत है और सरकार को निश्चित तौर पर वहां से दूर रहना चाहिए, इसी लेख में उन्होंने बताया था कि उन्हें किस तरह से दोस्तों के साथ तिहाड़ जेल में रहना पड़ा था, तब जेएनयू के वाइस चांसलर को इन छात्रों से अपनी जान को ख़तरा हुआ था, अपने लेख में उन्होंने लिखा था, "यह 1983 की गर्मियों की बात है, हम जेएनयू के छात्रों ने वाइस चांसलर का घेराव किया था,वह उस वक्त हमारे स्टुडेंट यूनियन के अध्यक्ष को कैंपस से निष्कासित करना चाहते थे,घेराव प्रदर्शन के दौरान देश में कांग्रेस की सरकार थी पुलिस आकर सैकड़ों छात्रों को उठाकर ले गई, हमें दस दिन तक तिहाड़ जेल में रहना पड़ा था, पिटाई भी हुई थी,अभिजीत बनर्जी समय समय पर मोदी सरकार की नीतियों की ख़ूब आलोचना कर चुके है, प्रधानमंत्री मोदी ने भी उन्होंने पुरस्कार जीतने की बधाई दी है।मोदी सरकार के सबसे बड़े आर्थिक फैसले नोटबंदी के ठीक पचास दिन बाद फोर्ड फाउंडेशन-एमआईटी में इंटरनेशनल प्रोफेसर ऑफ़ इकॉनामिक्स बनर्जी ने न्यूज़ 18 को दिये इंटरव्यू में कहा था, "मैं इस फ़ैसले के पीछे के लॉजिक को नहीं समझ पाया हूं. जैसे कि 2000 रुपये के नोट क्यों जारी किए गए हैं, मेरे ख्याल से इस फ़ैसले के चलते जितना संकट बताया जा रहा है उससे यह संकट कहीं ज्यादा बड़ा है, बनर्जी उन 108 अर्थशास्त्रियों के पैनल में शामिल रहे जिन्होंने मोदी सरकार पर देश के जीडीपी के वास्तविक आंकड़ों में हेरफेर करने का आरोप लगाया था, इसमें ज्यां द्रेज, जयति घोष, ऋतिका खेड़ा जैसे अर्थशास्त्री शामिल थे,
अभिजीत बनर्जी ने नोबेल पुरस्कार जीतकर एक बार फिर साबित कर दिया है, कि भारत में प्रतिभागियों की कोई कमी नहीं है, कमी है तो हमारे तन्त्र की,यहां पर अच्छी अच्छी प्रतिभायें लालफीताशाही का शिकार हो जाती है, यहां तो अरबो खरबों का घोटाला करने वाले यादव सिंह जैसे ही देश विकास में सार्थक योगदान देते नजर आते हैं और देश का भविष्य तय करते हैं, यह वास्तव में देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति हैं ?