पुलिस ने उड़ाई कानून की धज्जियां।
लेकिन जनता को धज्जियां उड़ाना अच्छा लगा?
मानवाधिकार कार्यकर्ता को हैदराबाद पुलिस की कार्यप्रणाली पर ऊँगली उठाने का पूरा अधिकार है, लेकिन देश की जनता में हैदराबाद पुलिस की जवाबी कार्यवाही में एनकाउंटर का शिकार बलात्कारी,हत्यारों को कुत्ते की मौत पर देश में जश्न का माहौल है,हो सकता है, कि पुलिस ने एक तीर से दो शिकार किये हो,जनता के आक्रोश से मुक्ति पाई,साथ ही जनता के बीच हीरो वाली छवि बनाई, दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्षा स्वाति मालीवाल का कहना है कि यह अपराधी सरकारी मेहमान नवाजी से महरूम रह गए, कितना कष्टकारी होता है, एक अपराधी को वर्षों कोर्ट ट्रायल के नाम पर जीवन दान देना। लेकिन पूरे प्रकरण से एक बात तय है कि देश की जनता न्यायिक व्यवस्था से संतुष्ट नहीं है, वह त्वरित कार्यवाही चाहती है, जैसा कि हैदराबाद पुलिस ने किया, मैने स्वयं सोशल मीडिया पर इस एनकाउंटर का समर्थन करते हुए हैदराबाद पुलिस जिंदाबाद लिखा, जिस पर कुछ मित्रों ने तीखी आलोचना करते हुए सवाल खड़े किए, यह न्याय नहीं है, और यदि यह न्याय है,तो यह अदालते किस लिए है... आदि आदि।
हम देश की जनता का रुख भी नजरअंदाज नहीं कर सकते, जिस पुलिस पर जनता का विश्वास उठ गया था लगता है उसका भरोसा लौट आया है मृतका डॉ रेडी के पिता/ परिजनों ने भी एनकाउंटर का स्वागत किया हैं, हमारी न्यायिक व्यवस्था इतनी लचर और लापरवाह हो गई है, की आप चाह कर भी उस मकड़जाल को पार नहीं कर सकते? परिणामस्वरूप न्याय मिलने में इनती देरी हो जाती है, कि न्याय का मतलब ही समाप्त हो जाता है, 2012 में देश के चर्चित निर्भया कांड के अपराधी दोषी करार देने के बाद भी जिंदगानी के मजे ले रहे है, निर्भया की मां बार-बार कह रही है कि 7 साल से साल से अदालत जाते-जाते परेशान हो गई हूं बलात्कारी जिंदा है कल्पना कीजिए जिसकी बेटी हैवानियत के साथ मार दी गई हो, उस मां बाप बाप पर क्या बीत रही होगी यदि हमारी न्याय व्यवस्था इस प्रकार के मामलों में मुस्तैदी से कदम उठाएं तो शायद इस प्रकार के एनकाउंटर पर खुशी नहीं मनाई जाएगी, देश की महिलाएं दहशत के माहौल में जी रही हैं खासतौर पर कामकाजी महिलाएं ना जाने कब कोई शैतान उन्हें अकेला पाकर अपनी हवस का शिकार बना ले साथ ही जिंदगी भी लील दे, ऐसे मां-बाप जिनकी बेटियां महिलाएं कामकाजी हैं उनके घर आने तक फिक्रमंद रहते हैं, और बार-बार फोन पर उनकी लोकेशन जानना चाहते हैं आखिर क्या हो गया है हमारे समाज को। समाज के कामुक दरिंदों का समाधान तो हम सबको मिलकर सोचना होगा, अफसोस जनक है कि देश की संसद/विधनसभाओ में जघन्य घटनाओं के आरोपी चुन कर आ रहें हैं,राजनीतिक दलों को कोई फर्क नहीं पड़ता कि अमुक पर कितने मुकदमें चल रहे हैं, उन्हें तो बस वोट बटेरु आदमी चाहिए, उत्तर प्रदेश के मंत्री अमरमणि त्रिपाठी से लेकर कुलदीप सेंगर तक हरियाणा के बलात्कारी गोपाल कांडा पुनः विधायक चुन लिए गये....इस प्रकार के जनप्रतिनिधियों की लम्बी फेहरिस्त है, मानव अधिकारों के के हिमायती कुछ भी तर्क दें हैदराबादी घटना से त्वरित न्याय की ओर सरकार कदम बढ़ाने के लिए जरूर मजबूर होगी बलात्कार के मामलों में अपराधियों को जमानत नहीं मिलनी चाहिए यदि ऐसा प्रावधान होता तो उन्नाव की घटना नहीं घटती इस प्रकार की घटनाएं हमारे लिए कलंक हैं हम विकास नहीं विनाश की ओर जा रहे हैं अपनी बहन बेटियों को सुरक्षित रखने के प्रभावी उपाय हमको अवश्य ढूंढने होंगे।
माना बगावत से कानून खिलाफ होता है।
हाथ फैलाने से मग़र कहा इंसाफ होता है।