हैदराबाद की एक और बेटी बनी निर्भया।
हैवानियत का नँगा नाच आखिर कब तक ?
कैसी विडम्बना है कि जिस भारतवर्ष में नारी को अराध्य माना गया है, जहाँ सदियों से नारी की पूजा होती आई है, उसी भारतवर्ष में आज उसके साथ अनंत अत्याचार हो रहे हैं।
हैदराबाद की एक और बेटी डॉ प्रिंयका रेड्डी को समाज के बहसी दरिंदों ने न सिर्फ अपनी हवस का शिकार बनाया, बल्कि मानवता की सारी हदें पार करते हुए जिन्दा जला कर मार डाला.... शर्म आती है, हमें अपने को इंसान कहने में,यदि ऐसे इंसान होते है तो हैवान कैसे होते हैं ? न कानून का डर, न समाज की परवाह, न मानवता का दर्द।
समाज के जागरूक नेताओं/समाजसेवियों ने कैंडल मार्च, धरना, विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है, जिसके अभी और गति पकड़ने की सम्भावनाये प्रबल है,सोशल मीडिया पर भी घमासान मचा हुआ है, सारे फेसबुकिये, व अन्य सोशल साइट्सो पर क्रांतिकारी आंदोलन की तैयारिया कर रहे है, आर पार की लड़ाई लड़ने का मन बन चुका है, लेकिन नतीजा वहीं रहेगा...ढाक के तीन पांच, सरकार गूंगी बहरी है,कानून की आँखों पर पट्टी बंधी हुई है।
संसद में भी हंगामा बरपा है, मंत्री जी बयान दे रहे है, हम बलात्कार पर सख्त कानून बनाने के लिए तैयार है (लेकिन लगता है शायद किसी न रोक रखा है ? ) न जाने अभी कितनी मासूम बच्चियों, महिलाओं को वहशी दरिंदों की दरिंदगी का शिकार होना पड़ेगा,समाज हर दरिंदगी पर अपना गुस्सा दिखायेगा, सरकार बयान देगी, हम अपना रोष लेखनी के माध्यम से प्रकट करेंगें आदि आदि।
आज हम जब समाज में महिलाओं की बराबरी की बात करते हैं एवं समाज के हर क्षेत्र में महिलाएं अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही है, ऐसे दौर में इस प्रकार के आदिम युग की कल्पना करना ही शरीर को झंझोड़ जाता है, अभी लोग भूले नहीं होंगे कि निर्भया दुष्कर्म ने एक समय समाज की संवेदनाओं को बुरी तरह झकझोरा था, पर लगता है इन दिनों यह संवेदनाएं अब इतनी कम हो गई हैं कि लगभग इतने ही गंभीर दुष्कर्मों पर अब बहुत कम ध्यान दिया जा रहा है। आज घटना घटती है, कल उसे हाशिए पर धकेल दिया जाता है, बलात्कार की शिकार सभी लड़कियां अखबारों की सुर्खियां नहीं बन पाती, या कहे तो इस प्रकार की सभी घटनाओं का मीडिया ट्रायल नहीं हो पाता,यह हमारे समाज के लिए बहुत चिंता का विषय है कि समाज इतना संवेदनाविहीन हो गया है, वह ऐसी क्रूर वारदातों के कारणों का सही पता लगाकर उन्हें कम करने का निष्ठावान, गंभीर प्रयास तक नहीं कर रहा है।
अहल्या से ले कर द्रौपदी तक तमाम उदाहरण धर्मग्रंथों में मौजूद हैं वर्तमान समाज में फूलन देवी, बिलकीस बानो और निर्भया जैसे बहुत सारे ऐसे मामले हैं, इन तमाम घटनाओं के बाद भी समाज की सोच में बदलाव नहीं आता दिख रहा है बलात्कार जैसे अपराध को कम करने के लिए सिर्फ सख्त कानून बनाने भर से काम नहीं चलेगा बल्कि समाज को अपनी सोच भी बदलनी होगी, बलात्कार केवल कानून से जुड़ा मसला नहीं है. समाज का दायित्व सब से बड़ा है सब से जरूरी है कि समाज से उस मानसिकता को खत्म किया जाए जिस के कारण बलात्कार जैसे कांड होते हैं मात्र कानून से इस सामाजिक बुराई और अपराध की प्रवत्ति को खत्म नहीं किया जा सकता।
और यदि सख्त कानून से ही इस सामाजिक बुराई पर रोक लगानी है तो मौजूदा सीआरपीसी,आईपीसी जैसे कानूनों को ताक पर रखना पड़ेगा इस देश में आवश्यकता है मुस्लिम देशों जैसे सख्त कानून की, जिसमें बलात्कार /हत्या जैसे संगीन अपराधों पर एक माह के अंदर ही सार्वजनिक रूप से गर्दन काटकर बलात्कारी को उसके कुकर्मों की सजा दी जाती है फलस्वरुप मुस्लिम देशों में बलात्कार और क़त्ल जैसे संगीन अपराध ना के बराबर है,एक पुरानी कहावत है "भय बिन प्रीत नहीं होती" बलात्कारी वहशियों में भय का होना जरूरी हैं।