(बदनाम खबरची) शाहीन बाग की महिलाओं ने लिखी आंदोलन की नई गाथा।
 















भारत के इतिहास में एक असाधारण घटना ?


शाहीन बाग की महिलाओं ने लिखी आंदोलन की नई गाथा।


देश की राजधानी दिल्ली के ओखला स्थित शाहीन बाग में चल रहा नागरिकता संशोधन कानून का विरोध अब चरम स्तर पर पहुंच गया है,शान्ति पूर्वक चल रहे आंदोलन की आंच से न सरकार पिघली है न ही आंदोलन कर रही महिलाओं का हौसला कम हुआ है,आंदोलन के चलते दिल्‍ली पुलिस ने ओखला-कालिंदीकुंज रूट को यातायात के लिए ब्‍लॉक कर दिया है। नागरिकता संसोधन कानून के समर्थक रास्ता बंद होने के नाम पर आंदोलन के विरोध में खड़े हो गए है,और वह सरकार पर दबाव बना कर शान्तिपूर्वक चल रहे आंदोलन को कुचलना चाहते है।
नागरिकता कानून के विरुद्ध चल रहे प्रदर्शन में महिलाओं की संख्या पुरुषों के मुकाबले कहीं ज्यादा है, छोटे बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक इसके विरोध का झंडा उठाए हुए हैं, नागरिकता कानून के खिलाफ भीड़ डटी है,छात्र-नौजवान नारे लगाते हैं, गीत गाते हैं, पोस्टर लहराते हैं पैंफलेट बांटते हैं और कहते हैं सरकार नागरिकता कानून वापस ले,ऐसा प्रतीत होता है जैसे क्रांतिकारियों के सैलाव आ गया हो, बिना किसी ठोस नेतृत्व के भी प्रदर्शनकारियों में गजब का अनुशासन देखने को मिल रहा है, शाहीन बाग़ इलाके में बीते एक महीने से चल रहे आंदोलन को महिलाएं ही चला रही हैं रात में घर का काम निपटाकर महिलाएं यहां पहुंच जाती हैं, किसी की गोद में उनका बच्चा होता है तो कोई बुजुर्ग महिला 60-70 साल की होती हैं, रिकॉर्ड तोड़ ठंड के बावजूद महिलाएं तिरपाल के नीचे रात भर बैठी रहती हैं, गोरखपुर की रहने वाली प्राची पांडेय शाहीन बाग में आंदोलन शुरू होने के तीसरे-चौथे दिन बतौर पत्रकार पहुंची थीं, एक दो बार आने जाने के बाद प्राची को यह आंदोलन कुछ अलग लगा उन्हें लगा कि शाहीन बाग़ के आंदोलन में उनकी भी भागीदारी होनी चाहिए, प्राची अब शाहीनबाग में चल रहे आंदोलन में मंच का संचालन करती हैं वो अपनी पत्रकारिता की नौकरी छोड़ चुकी हैं प्राची बेबाक हो कर कहती हैं, “जब मैं यहां बतौर पत्रकार आई थी तो लोगों ने, खासकर महिलाओं ने बेहद प्यार दिया, मुझे यहां आकर अच्छा लगा फिर मैंने सोचा क्यों न मैं भी इस आंदोलन के लिए कुछ करूं,अब मैं यहां मंच संभालने का काम करती हूं मुझे कोई चेहरा नहीं बनना मुझे यह आंदोलन कुछ अलग लग रहा है, महिलायें इस पूरे आंदोलन को चला रही हैं, अब मैं यहां पूरी रात रुकती हूं,एक दिन स्थानीय नेता अंशु खान कुछ नेताओं के साथ मंच पर पहुंच गए और प्राची से माइक लेकर खुद ही संचालन करने लगे, ऐसा होते ही सामने बैठी महिलाएं खड़ी होकर आंशु खान को मंच से हटने के लिए कहने लगती हैं, महिलाएं स्टेज तक पहुंच जाती हैं और कहती हैं, इस मंच से राजनीति नहीं होनी चाहिए
आंदोलनकारी श्रीमती हिना अहमद मंच पर स्थानीय नेताओं को बैठाने पर एतराज़ जाहिर करते हुए कहती हैं, "नेताओं के बैठने से हमारा आंदोलन ख़राब हो जाएगा,यह आंदोलन महिलाओं का है, नेता आएं अपनी बात कहें और चले जाएं  यह मंच उनकी राजनीति चमकाने का जरिया नहीं बनने दिया जायेगा।
इस साधारण से दिखने वाले आंदोलन ने मुझे रूसी क्रांति के जनक कहे जाने वाले मार्क्सवादी नेता व्लादिमीर लेनिन की याद दिला दी लेनिन ने लिखा है कि जरूरी नहीं कोई विचार धारा, पार्टी अथवा व्यक्ति क्रान्ति का नेतृत्व करें, सर्वहारा वर्ग बिना किसी ठोस नेतृत्व के भी क्रान्ति कर सकता है। मैं नागरिकता कानून पर कोई टिप्पणी नहीं कर रहा, लेकिन इतना अवश्य कहूंगा कि बिना ठोस नेतृत्व के चल रहा आंदोलन भारत के इतिहास में एक असाधारण घटना के रूप में अवश्य ही दर्ज किया जायेगा।



 

 



 



 















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