(बदनाम खबरची) रोज़ो में घर पर इबादत कर,हुक्मरानों के आदेशों का पालन करें मुस्लिम समाज।






रोज़ो के महत्व पर नजर डालता आलेख।

 

रोज़ो में घर पर इबादत कर,हुक्मरानों के आदेशों का पालन करें मुस्लिम समाज।

 

एक सवाल बहुत सारे लोग मुझ से करतें है, कि रमजान क्या है, रोजा क्यों रखा जाता है,इस्लाम बुनियादी रूप से पांच पिलर्स (स्तम्भ) पर टिका हुआ है। जिसमें से रोजा भी एक पिलर है। रमजान इस्लामी कैलेण्डर का नवां महीना है, इसी महीने पवित्र कुरआन मजीद उतारा (अवतरित)गया। रोजे का पहला मतलब तो यही है।की बुनियादी तौर पर इंसान अपने रब को खुश करने के लिए हर तरह के त्याग और बलिदान को तैयार रहे। रोजे में ना सिर्फ खानपान से परहेज करें बल्कि भोग विलास और बुरे विचार एवं गलत कर्मों से भी दूर रहे। इसलिए पवित्र कुरआन मजीद में साफ लिखा है कि रोजे का मतलब सिर्फ भूखा रहना नहीं है, रोजा आपकी आंखों का,जबान का,कानों का और मन का भी होना चाहिए। यदि आप रोजा रखते हुए किसी के प्रति खराब दुर्भावना पूर्ण विचार भी ले आते हैं। तो भी आप का रोजा नहीं माना जाता। मन का साफ होना लाज़मी हैं। मजहबे इस्लाम का पैटर्न पूरी तरह से वैज्ञानिक आधार पर रचा गया है। एक महीने के रोज़े रखने पर इंसान का जिस्म पूरी तरह से ओवरहाल हो जाता है। जब हम समयानुसार व कम खाते हैं तो हमारा पाचनतंत्र अच्छी तरह से काम करने लगता है। शरीर में अनावश्यक चर्बी पिघल कर बहुत सारी बीमारियों को रोक देती हैं। मेडिकल साइंस में साबित हो चुका है, जब आप भूखे होते हैं। तो आपका शरीर पेट में जमा खराब ग्रन्थियों व चर्बी को खाने लगता है।फलस्वरूप कैन्सर जैसी बीमारियों से बचा जा सकता है। रोजे का एक मकसद और भी बताया गया है। अमीर लोग जिनके पास माल-दौलत की कोई कमी नहीं जब वह रोजे रखता है तो उसे गरीब लोगों की भूख का अहसास होता हैं। साथ ही इच्छा शक्ति भी मजबूत होती हैं। रमजान के महीने में समर्थवानो पर ज़कात फ़र्ज किया गया। हर मुसलमान को अपनी माल-जायजाद का 2.5 प्रतिशत जकात के रूप में गरीबों,बेसहारा अपंगों को देना होता है। ताकि समाज में अमीर गरीबी की खाई को कुछ कम किया जा सकें। फितरे के रुप में भी गरीबों की मदद करने का फरमान इस्लाम में आया है। बुखारी शरीफ़ में रसूल स. फ़रमाते है कि ईमान की बुनियाद नियत से है।अल्लाह आपकी नियत देखता है। कुछ लोग चुगली करेंगे,मन में बुराई रखेंगे और रोजा, नमाज़ पढ़गे ऐसे लोगों के लिए स्पष्ट लिखा है कि आपकी नमाज़ आपके मुंह पर वापस मार दी जाएगी। अब बात कोरोना महामारी के चलते रोजदारों को घर पर इबादत की,तो इस्लाम में इस पर कोई मनाही नहीं है। उदाहरण के लिए एक बार मदीने में आंधी और बारिश आ रही थी नमाज का वक्त हुआ तो अजान दी गई, पैग़म्बर मोहम्मद साहब ने अजान के साथ एलान करा दिया कि लोग मस्जिदों में न आए,अपने घरों पर ही नमाज पढ़े इससे यह संदेश साथ मिलता है कि कोई मुसीबत आए तो घर पर रहकर भी इबादत की जा सकती है। और इसी लिए आज तमाम मुस्लिम उलेमा (धर्मगुरु) ने ऐलान कर दिया है कि रोजो में इफ्तियार,तरावीह, नमाज़ अपने घरों में अदा करें। आज पूरी दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही है, इंसान का अस्तित्व खतरे में है कोरोना वायरस ना तो सरहदों को देख रहा ना ही मजहब, इसलिए हर मजहब के लोग यह तय कर लें कि हम अपनी इबादत, प्रार्थना को व्यक्तिगत बनाकर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करेंगे।तभी इस महामारी से बचा जा सकता है, मजहब इस्लाम इसमें कहीं आड़े नहीं आता। मुस्लिम समाज मजहबे इस्लाम को अपने आचरण का हिस्सा बनाये, गरीबों, बेसहाराओं को अपनी रोटी में से भी बाट कर भूखा न सोने दे,इस्लाम का पैगाम है कि यदि आपका पड़ोसी भूखा है, तो आपका खाना हराम है।दुनिया में मोहब्बत का पैगाम पैगम्बर मुहम्मद साहब ने दिया था। आओ हम सब दुआ करें कि जो स्वस्थ कर्मी अपनी जान की बाजी लगा कर लोगों की सेवा कर रहे हैं, वह सब स्वस्थ रहें, हम कानून और हुक्मरानों के आदेशों का पालन करें। याद रखें इंसानी जिंदगी सबसे ज्यादा कीमती है। जिंदा रहेंगे तभी तो इबादत करेंगे।

 

 


 



 



 















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