देश मे आत्महत्याओं के मामलों में भी भेदभाव पूर्ण नजरिया। आपदा को अवसर में बदलने का प्रचलन आजकल जोर शोर से प्रगति कर रहा है। देश मे एक से बढ़कर एक प्रतिभा डॉ, वैज्ञानिक, आइएएस,आईपीएस द्वारा आत्महत्या की खबरें प्राप्त होती रहती है। लेकिन अखबार के लिए वह एक खबर के अलावा कुछ नहीं होता, देश के अन्न दाता की आत्महत्या तो अखबार के किसी कौने में तीन लाइन में सिमट कर रह जाती है। लेकिन बिहार निवासी फ़िल्म स्टार सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या या हत्या को लेकर देश की राजनीति में भूचाल आया हुआ है।देश के नम्बर वन कहलाने वाले मीडिया संस्थानों, चैनलों के पास लगता है,खबरों का अकाल पड़ गया है। या यूं कहें कि देश मे कोरोना, बेरोजगारी, भुखमरी,लूट बलात्कार,अपराध जैसे मुद्दे समाप्त हो गए है। आइये बात करते है देश मे हुई आत्महत्यों की देश के 23 आईआईटी शिक्षण संस्थानों में पिछले पांच साल में 50 छात्रों ने आत्महत्या की है, इसमें से 14 मामले अकेले आईआईटी गुवाहाटी से सामने आए हैं।पिछले तीन वर्षों में देश की सभी सेनाओं के 305 जवानों ने अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली,जिससे सेना के 233, नौसेना के 15 तथा वायुसेना के 57 देश के अधिकारी/कर्मचारी थे। अब बात देश के अन्नदाता किसानों की, हाल में आई एनसीआरबी यानी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट में सामने आया कि साल 2019 में 10,281 किसान आत्महत्या करने को मजबूर हुए यानी हर दिन 28 किसानों ने मौत को गले लगा लिया। जबकि प्रत्येक वर्ष लगभग 89 दिहाड़ी मजदूर जान देने पर मजबूर है। आज ज्वलंत प्रश्न यह है, कि क्या मीडिया संस्थानो को किसानों, बेरोजगारों,सेना के जवानों, वैज्ञानिको,डॉक्टरों, प्रतिभाशाली छात्रों की आत्महत्या-आत्महत्या नहीं लगती, आखिर क्यों समाज मे आईने का काम करने वाले चैनलों ने एक संस्थान/व्यक्ति विशेष के नाम का लबादा क्यों ओढ़ लिया है, देश में व्यवस्था का शिकार हजारों आत्महत्याएं करने वाले क्या देश के नागरिक नहीं होते,क्या वह किसी माँ के लाल नहीं...? इस देश में हर आदमी मरने से डरता है।
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(बदनाम खबरची) देश मे आत्महत्याओं के मामलों में भी भेदभाव पूर्ण नजरिया।