(बदनाम खबरची) दिल्ली दंगे: सांप्रदायिक ताकतें हारी ?

देश की राजधानी में आपसी सौहार्द बिगाड़ने का असफलप्रयास।


दिल्ली दंगे: सांप्रदायिक ताकतें हारी ? 


देश की राजधानीजिस समय अमेरिकन राष्ट्रपति ट्रंप भारत यात्रा आरम्भ हुई, ठीक उसी समय देश की राजधानी दिल्ली को सांप्रदायिकता की आग में झोंक दिया गया, काफी बड़ी तादाद में लोगों ने अपनी जान गवाई साथ ही कारोबारी रूप से लूट-पिट गए, दंगों के 24 घंटे तक तो  कानून व्यवस्था दंगों को रोकने में पूरी तरह से विफल रही,
राजधानी की गलियां सांप्रदायिक हिंसा की आग में कई दिनों तक जलती रही हैं,पूर्वोत्तर दिल्ली के मुख्य रूप से चांदबाग, भजनपुरा, गोकुलपुरी, बाबरपुर, मौजपुर, कर्दमपुरी और जाफराबाद के इलाके में हाहाकार मचा रहा, जिसके निशान अब भी बिखरे पड़े हैं,अब दिल्ली पूरी तरह से शांत होनी की ओर अग्रसर है, यह तय है कि बिना सत्ता व शासन-प्रशासन की सहभागिता से यह मुमकिन नहीं है,कई तरह की सामाजिक शक्तियां भी इसके पीछे लगी होंगी, वरना हिंसा का इतना विस्तार न होता और न ही हिंसा इतने लंबे समय तक जारी रहती,पुलिस जांच में दंगों के कारणों का पता लगना बाकी है, दिल्ली में दंगा भड़काने के पीछे बीजेपी नेता कपिल मिश्रा के विवादित बयान को जिम्मेदार माना जा रहा है, इस मामले का दिल्ली हाई कोर्ट ने भी संज्ञान लिया है लेकिन सरकार उनकी गिरफ्तारी को टालने में जुटी है। ऐसा लग रहा था जैसे सुनियोजित तरीके से दिल्ली को दंगों की आग में झोंका गया,दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल से लेकर दंगों की आग में झुलसे पीड़ित तक यही कह रहें है, कि दंगों में स्थानीय लोग नहीं थे, हमलावर बाहरी थे। नागरिकता कानून के विरोध में धरने पर बैठे आंदोलनकारियों के विरोध में काउंटर करने पर उतारू भीड़ जब प्रदर्शनकारियो से भिड़ गई, दिल्ली के कई क्षेत्रों में दंगाइयों ने न केवल लूटपाट की बल्कि सरे आम गोली, कट्टे,तेज़ाब पत्थर, गुलेल का प्रयोग किया गया,पेट्रोल पंप सहित अनेकों शोरूम को न केवल आग के हवाले किया गया, बल्कि रिहाइशी इलाकों के घरों को भी नहीं बख्शा गया, आज भी उस भयानक त्रासदी का खयाल आते ही रूह कांप जाती हैं, एक कहावत बड़ी प्रसिद्ध है कि "दिल्ली है दिल वालो की" इतने बड़े दिल वाले दिल्ली निवासी इतने बेदिल कैसे हो सकते है, सोच से परे हैं, कितनी गलियां, कितने कूचे अनजान व्यक्ति को तो कभी दिल्ली का भगोल समझ ही नहीं आता,हर गली कूचे में कन्धे से कंधा मिलाकर सदियों से रहते इंसान,पल भर में कैसे हिंदू-मुसलमान में बदल गये... गले नहीं उतर रहा...
दिल्ली दंगों से उभर चुकी है, आम जनजीवन आहिस्ता आहिस्ता ढ़र्रे पर आ रहा है, साथ ही सामने आ रही है सैकड़ों ऐसी मिसालें जिसमें लोग दंगों के अनुभव साझा करते हुए बता रहे है कि हमें हमारे अमुक हिन्दू पड़ोसियों ने बचाया या हमें हमारे अमुक मुस्लिम पड़ोसियों ने बचाया, दोनों समुदाय के लोगों ने अपने-अपने पड़ोसियों को बचाने के लिए अपनी जान जोखिम डाल दी लेकिन किसी को नुकसान नहीं होना दिया,इतना प्यार, अपनापन और मोहब्बत करने वाले पड़ोसी कभी एक दूसरे की जान के प्यासे हरगिज नहीं हो सकते।
भड़काऊ भाषण देकर देश की राजधानी को दंगों का दंश देने वाले भले ही देश के नेता बन जाये लेकिन दंगों में अपनों को खोने वाले सैकड़ों यतीम हो चुके बच्चे,विधवा हो चुकी माताएं,बहनों और बेसहारा हो चुके माँ-बाप की बद्दुआएं उनको जरूर सताएगी।



कोई हिन्दू कोई मुस्लिम कोई ईसाई है




सब ने इंसान न बनने की क़सम खाई है